This is pretty unique- review of ‘The Other Side’ in Hindi.
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दोस्तों, कुछ अरसा पहले अपनी मेल चेक करते समय एक मेल पर नज़र अटकी जिसमे किसी फ़राज़ क़ाज़ी नामक शख्स ने अपनी नयी किताब भेजने की पेशकश की जिसके साथ उसे पढ़ने के बाद उस पर खाकसार द्वारा ईमानदाराना समीक्षा लिखने की इल्तिजा भी आलूदा थी । हालाँकि बन्दे के पास ऐसे ऑफर्स तो आते रहते थे जिनमे किताब को पढ़ने के बाद उनकी समीक्षा मय वाजिब उजरत के साथ एक तयशुदा समय सीमा में लिखने की पेशकश होती थी लेकिन जिसे ख़ाकसार ने दो बातों के चलते कभी मंज़ूर नहीं किया । अव्वल तो यह कि बंदा इस बात को साफ़ कर देता था कि, गोया, समीक्षा मैं किताब पसंद आने की सूरत में ही लिखूंगा क्योंकि अगर मुझे किताब पसंद नहीं आती तो मुझमे उसे पूरा पढ़ पाने की बर्दाश्त और हिम्मत चूक जाती है, और दोयम यह कि ख़ाकसार की काहिल तबियत को मद्देनज़र रखते हुए समीक्षा लिखने में समय सीमा की बंदिश न बांधी जाये । और जैसा कि होना चाहिए वही होता था कि बात बन नहीं पाती थी ।
यही दोनों शर्तें क़ाज़ी साहब को भी जतला दी गयी और चैन से यह सोच कर बैठ गया गया कि अब तो बात हमेशा की तरह आगे बढ़ने से रही लेकिन इस चैन में खलल उस समय पड़ा जब कुछ ही दिनों के वक़्फ़े के बाद ‘द अदर साइड’-जी हाँ यही नाम है इनकी क़िताब का-मौसूल हुई । किताब के पन्ने पलटने पर पाया कि क़िताब का मौज़ूं खौफ़ या हॉरर है जिसपर हिंदी साहित्य में न तो अच्छी किताबें लिखी गयी हैं और न ही स्तर की हिंदी फ़िल्में बनी हैं । चूँकि हॉरर विषय खाकसार को हमेशा से आकर्षित करता रहा हैं अत: क़िताब के सफ्हे पलटे जाने लगे और किताब की दिलचस्प भूमिका ने उसमे रूचि जगाने का काम बखूबी किया जिसके चलते यह किताब पढ़ी जाने लगी जिसमे ‘तेरह’ खौफ़शुदा कहानियाँ शामिल की गयी हैं जो एक-एक करके किसी सीढ़ी का सा काम करती हैं जो आपमें इस किताब का सफ़र तय करने की दिलचस्पी जागती हैं ।
हालाँकि कई कहानियाँ हिंदी हॉरर फिल्मों के प्लॉट से प्रेरित लगती हैं जैसे कि सबसे पहली कहानी जिसमे एक डॉक्टर को एक आदमी अपनी बीमार पत्नी के इलाज की दुहाई देकर एक वीरान और बियाबान हवेली में ले जाता है जहाँ उस भूतिया हवेली में एक विशाल कमरे में एक औरत बीमार पड़ी होती है जैसा कि फ़िल्म ‘वह कौन थी’ में भी था जिसमे डॉक्टर मनोज कुमार को साधना के इलाज के लिए ले जाया जाता है या फिर वह कहानी जिसमे एक लड़का बार में मिली एक लड़की पर आशिक़ हो जाता है और उसका पता लगाने पर उसे पता लगता है कि वह लड़की तो कब की खुदा को प्यारी हो चुकी है । ठीक यही प्लाट था फ़िरोज़ खान और तनूजा की फ़िल्म ‘एक पहेली’ का । या फिर वह कहानी जिसमे एक फैमिली एक हॉन्टेड हाउस में रहने आती है जिसमे अजीब-अजीब सी घटनाएं घटती रहती है, रातों में कोई बच्चा उस फैमिली के बच्चों के साथ खेलने आता रहता है जो सिर्फ़ घर के बच्चों को ही नज़र आता है, यही प्लॉट था फ़िल्म ‘वास्तुशास्त्र’ का । कहने का मतलब है इस किताब की कई कहानियां ऐसी हैं जिनकी थीम पहले ही कई हिंदी फिल्मों में नज़र आ चुकी है लेकिन अगर इस किताब की कोई खूबी है तो वह यह है कि मात्र अल्फ़ाज़ों के बल पर डर पैदा करना कोई आसान काम नहीं है जिसमे इस किताब की लेखक जोड़ी खरी उतरती है क्योंकि किसी फ़िल्म में तो दृश्य और ध्वनि के प्रभाव से डर आसानी से पैदा किया जा सकता है लेकिन अल्फ़ाज़ों के ज़रिये ऐसा कर पाना एक मुश्किल काम है जोकि यह किताब बखूबी करती है ।
किताब की सभी तेरह कहानियां पारलौकिक या आत्माओं के वजूद पर आधारित है जोकि इस किताब को टाइप्ड की श्रेणी में रखती है क्योंकि अगर लेखकों ने खौफ़ पैदा करने के लिए इत्तेफ़ाक़ों और घटनाओं का इस्तेमाल बिना आत्माओं के वजूद को स्थापित करते हुए किया होता तो शायद तर्कशील और बुद्धिजीवी पाठकों को भी संतुष्ट किया जा सकता था । बहरहाल बावजूद कुछ विसंगतियों और दोहराव के फ़राज़ क़ाज़ी और विवेक बनर्जी द्वारा लिखित ‘एम्ब्रोस्ड’ एंड हॉरर इंफलेक्टिंग डिज़ाइन वाले कवर की यह किताब, जिसे आप अगर आप रात में पढ़ने की हिमाकत कर बैठते हैं तो नल से टपकते पानी की टपटप, दरवाज़े की चरचराहट या हवा से हिलते जाते पर्दों की सरसराहट जैसी मामूली घटनाएं भी आपमें वह खौफ़ ‘इंजेक्ट’ करने में कामयाब रहती है जो आपकी उस रात की नींद में खलल पैदा करने के लिए काफी है । वाजिब दाम वाली यह किताब हॉरर-साहित्य के क्षेत्र में एक नयी और उत्साहजनक पहल है जो हॉरर साहित्य पसंद करने वाले पाठकों को निश्चय ही पसंद आना चाहिए ।